आरोग्य का ज्ञानकोश Recipe by Jain Rasoi 325 days ago

आरोग्य का ज्ञानकोश
    आरोग्य का यह ज्ञानकोश संभालकर रखेंगे तो उपयोगी रहेगा :

    अेडिटिव्झ : पांच हजार से ज्यादा वर्ष पहले, सर्व प्रथम मानव ने अपने खुराक में नमक का शुभारंभ किया । तब से लोग स्वाद बढ़ाने के लिए खुराक में कुछ न कुछ मिलाते रहते है । "मोनो सोडियम ग्लुकोनेट' नाम का एक पदार्थ हैं जो दाल, पीज़ा वगैरह में उपयोग करने से स्वाद बढ़ता है । चाइनीज़ वानगी में तो 'आजिनोमोटो' होता ही है । इसके उपयोग से केन्सर होता है ।

    इसके उपरांत तली हुई वेफर, बिस्किट और पेकेट की चीजें, जिसमें तेल या घी का उपयोग किया हुआ रहता है वह पेकेट काफी लंबे समय तक पड़े रहतें हैं तो तेल खोरा हो जाने से बिगड जाता है परंतु ऐसा न हो इसके लिये उसमें 'अेन्टी ओक्सिडन्ट' कक्षा का रसायन डाले जाते है । आलू की वेफर और खारी बिस्किट में "बुटिलेटेल हाईड्रो अेक्सिटोल्युन' आता है । जिजसे चमड़ी बिगड़ती है, बच्चों का दिमाग खराब दोता है और बच्चें "हाईपरअेक्टीव' बनते हैं ।

    ताजे फल और सागभाजी गुणकारी है, अब सूखे हुए फल या डब्बापेक फलों को सुंदर रूप में रखने के लिये उसमे कृत्रिम रंग डालने हैं । दूध का पाउडर सफेद दिखे उसके लिये उसमें कृत्रिम रंग डालते है । कन्डेन्स्ड मिल्क के डब्बे में इन्स्पन्ट कॉफी मे भी कृत्रिम रंग आता है । कृत्रिम रंग, कोलतार वि डामर में से बनता है । टारट्राजीन नाम का कृत्रिम रंग खाद्य पदार्थ में आता है, जो बच्चों को नुकसान पहुंचाता है ।

    हॉटल में तुम पुडिंग या मिल्कशेक पीते हो, आईस्क्रीम खाते हो उसमें 'ईमल्सीफायर और स्टेबीलाईजर' नाम का रसायन डालते हैं। मिल्कशेक और आईस्कीम को कृत्रिम रूप से गाढ़ा करने के लिये उसमें इमल्सीफायर डालते है । प्रायः सभी खाद्य पदार्थो में स्वाद और सुगन्ध लाने के लिए उसमें फ्लेवरींग एजन्ट डाला जाता है ।
    "मित्रों तुम जानते हो ? तुम्हारे दैनिक भोजन में तुम ५००० से भी ज्यादा अकुदरती रसायन लेते हो ! तुम हर वर्ष छः रत्ती से भी ज्यादा प्रमाण में बनावटी संरक्षक दवाईयाँ (Preservatives) के भोक्ता बनते हो ! परिणाम :- मोटापा, हृदयरोग, मधुप्रमेह और केन्सर जैसे रोंगो का शिकार बनते हो ।

    खाने पीने के शौक़ीन लोगो के पेट में कचरा डाला जा रहा हैं
    छले एक सप्ताह से सूरत में ऑरारेशन हेल्थ केयर चल रहा है । पिछले वर्ष सूरत में भारी बरसात और बाढ़ से हुई गंदगी में से प्लेग रोग निकला था । अनेक लोगों ने जान गंवाई।

    स्वच्छता और आरोग्य की सुरक्षा के लिये लारी गल्ला, हॉटल, फेक्ट्रियों की चैंकिग हुई । सूरतवाले जिस पर टूट पडते थे वे खाद्य पदार्थ और उसमें उपयोग होते कच्चे माल की जाँच हुई । इस जाँच में मुह में पानी आने के बदले उब आये ऐसी हकीकत हाथ लगी ।

    पंजाबी व्यंजनों में उपयोग किया जाने वाला कठोल सडा हुआ और जीवयुक्त था । तैयार लेमन ज्यूस की बोतलों में मकोडे और घी के बर्तन में कोकरोज ने समाधी ली थी । तैयार मिठाईयों पर जमीन पोछनेवाले कपड़े ढ़के थे । बिना ढ़की मिठाईयों पर बेशुमार मक्खीयाँ भिन-भिना रही थी । एसेंस और फुड कलर की एक्सपायर्ड डेट बीत गई थी । आम का रस निकालकर पैक करती फेक्ट्रियों में चिटी, मकोडी, इल्लियोंवाला सड़ा आम उपयोग में ले रहे थे । तैयार आचार गंध मार रहे थे । सडे हुये टमाटर से बने, बास मारते सॉस को पाउडर से बास रहित बनाकर पैक करते थे। बर्तनों पर से धूल और गंदगी की बात तो दूर रही परन्तु आजू बाजू में पडी चूहे की लेंडी को साफ करने की तकलीफ भी मालिक नहीं ले रहे थे। प्रख्यात बेकरी में फूलनवाले पाव को ओवन में सेंककर टोस्ट बनाने का काम चालू था। बाजू के संडास से आई हुई मक्खीयॉं बिस्किट और कच्ची सामग्री पर निरन्तर घूम रही थी।

    सरकारी तंत्रने खाने के शौकीन सूरतवालों को इन सबकी जानकारी देकर संतोष माना कि, लालबत्ती धरने की फरज हमने अदा की अब लोग ध्यान रखेंगे; यह इनकी भूल थी। रविवार को खाने के शौकीन सुरतीलाला तो फिर वही उत्साह से लारी (ठेले), होटलों पर टूट पडे। थ्री स्टार, फाईव स्टार और सेवन स्टार होटलों का नाम सुनकर मुंह से लार टपकाता मानवों को अब तो सचमूच पता चलेगा कि, होम टु होटल और होटल टु हॉस्पिटल।

    डब्बा पैक फल, सागभाजी और टिंड बियर पुरुषों के वीर्य को दूषित करते है
    पुरुषों के वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या समग्र विश्व में घट रही है इसका विवरण 'अभियान ' साप्ताहिक में छपने के बाद नये नये संशोधन के परिणाम बाहर आये हैं । उसके मुताबिक अब स्पेन के डॉक्टरों का मानना है कि डब्बापेक (टिन्ड) वेजीटेबल, फल और डब्बे में पेक बियर, डब्बे के अन्दर का रसायनवाला आवरण आदि पुरुष के वीर्य को दूषित करता हैं । "बिस्फेनोल-अे' (Bisphenol-A) नाम का रसायन फूडकेन्स के अन्दर के आवरण में उपयोग होता हैं । अन्दर की धातु खराब न हो इसलिये ये रासायनिक आवरण चढ़ाते हैं परन्तु ये रसायन खाद्य पदार्थो में जाता हैं और वह खाने से उसमें रहा हुआ ओस्ट्रोजन नाम का तत्त्व पुरुषों में नपुंसकता लाता हैं। बहूत सारी यूरोप की रसायन उत्पन्न करनेवाली कंपनियॉं इससे चिंता में पड गई हैं ।

    लंदन टाईम्स के मेडिकल पत्रकार लोईस रोजर्स लिखते हैं कि पेट्रोल और प्लास्टिक उद्योग के रसायन स्त्री हार्मोन की नकल करते हैं । उपरांत स्त्रियाँ गर्भनिरोधक गोलियॉं, उसी तरह की दूसरी गोलियॉं खाती है । वह अंत में तो सूप्टी के जल भंडार में वापस जाती हैं और फिर वह पुरुषो के शरीर में जाकर हानि पहुंचाती है । इसलिये आजकल पुरुषों में नपुंसकता बढ़ती जा रही हे । टिन्ड फुड के डब्बो में थेलेट्‌स (Phthalates) नाम के रसायन का उपयोग होता है । वह भी वीर्य के ऊपर विपरीत असर करता हैं ।
    डिटरजन्ट्स और बच्चों को दूध पीलाने वाली प्लास्टिक की बॉटल के रसायन भी हानिकारक हैं ऐसा ब्रिटिश सरकार के वैज्ञानिक कहते हैं । आजकल युगलों में बांझपन बढ़ता जा रहा हैं । संतानहीन युगलों की संख्या मुंबई में भी बहुत है, जिसे सलामत रहना है उन्हें कम से कम डब्बा पैक बियर, डब्बा पैक टोमेटो ज्यूस वगैरह आधुनिक पेय से दूर रहना चाहिये । संतान पैदा करनेवाली दवाई या उपचार करानेवाले को तो खास । डिब्बा पेक रसगुल्ला घर में हो तो संतान इच्छित पुरुष को उससे दूर रखना चाहिये । अभी तक यह भूल हुई हो उन लोगों के लिये यह एक मारण है । अब से इन खाद्य पदार्थो से दूर रहे और आंवले के मौसम में सबेरे रोज चार आवले का ताजा रस खाली पेट पीयो।

    जानलेवा रोगों के लिए जवाबदार है फास्टफूड-प्रोसेस्द्फुद और पेय पदार्थ
    चाय, कॉफी, दारु, ठंडापानी तथा बाजार में मिलनेवाले फास्टफुड और प्रोसेस्ड फुड, चॉकलेट वगैरह जानलेवा रोगों के लिये जवाबदार हैं । ऐसा आहार शरीर में जहर तो फैला रहा है । परन्तु उसके साथ शरीर के आवश्यक तत्वों की कमी भी पैदा कर रहा हैं ।

    डॉ. गोकाणी बहुत स्पष्ट कहते हैं कि 'ऐसे कमजोर खुराक से ब्लडप्रेशर कम ज्यादा होता रहता है । होरमोन्स में तकलीफ पैदा होती है । मूड में परिवर्तन होता रहता है। आज के बालक बिल्कुल असहिष्णु हो रहे है और पुरे समाज में अपराध बढ़ रहे है इन सबके पीछे यही कारण जवाबदार है ।'

    हार्मोन्स के परिवर्तन से व्यक्ति चिडचिडा हो जाता है । उसकी अपेक्षायें बढ़ जाती है । जो पूर्ण न होने पर हताशा आती है और हताशा मानव को गुन्हाखोर बनाती है।

    नीचे की वस्तुओं को पहचानो और उससे बचो :
    1. अेडिटीझ : खाद्य पदार्थों को लम्बे समय तक टिकाने के लिये रसायन डालते है । पैकेट के ऊपर ईमल्सीफायर्स, फेट्टी एसीड, ई ४७1 लिखा होता है । इन सब में गाय की चर्बी होती है तो भी 'वेजीटेरियन फुड' का लेबल लगाते है ।
    2. अल्कोहोल-दारु-बियर : कई वाइन्स पीने से मांसाहार हो जाता है । बियर, दारु को रिफान्ड करने के लिये ड्रायब्लड (सूखा खून) या मछली में से निकलता आईसींग्लास उपयोग होता है । दो बियर की बॉटल पीये तो तुम्हारे पेट में २ औंस जितना खून या मछली का तत्व जाता है ।
    3. परदेश के बिस्किट में गाय की चर्बी, व्हे पाउडर डालते है बकरे के अँतडियों का अर्क है ।
    4. चीझ में उपयुक्त रेनेट बकरी या जन्में हुए बछडे का अर्क अेन्जाईन है । डुक्कर के पेट की चर्बी में से पेप्सीन बनता है । जो चीझ में उपयोग होता है ।
    5. च्युईंगम : च्युईंगम में उपयुक्त ग्लीसरीन गाय-बैल की चर्बी में से बनता है ।
    6. क्रिस्प : कुरकुरे नाश्ते की चीज चांवल की चकरी में व्हे का उपयोग होता है ।
    7. फीश ऑइल : बहुत सारे बिस्किट-केक-पेस्ट्री और मार्जरीन में मछली का सस्ता तेल उपयोग होता है। मार्जरीन सिंगतेल या वनस्पति तेल में से बनता है। परन्तु उसे मुलायम बनाने के लिये मछली का तेल डालना पडता है। जो ब्रेड पर लगाते है।
    8. जीलेटीन : गाय की हड्डी और पैर की खुर में से बनता है । जेली-आईस्क्री, चीझ, केक, विदेशी मिठाईयाँ उगैर मीन्ट मे उपयोग होता है । बहुत सारी आईस्क्रीम में जिलेटीन + चरबी + "ई' नाम का मासाहारी अेडीटीव उपयोग होता है ।
    9. आर्गेनीक पैदाशे : कुदरती खाद में से बनती साग भाजी बेचने से पहले सृखे खून, हड्‌्डी और मछली के चुरे में से बनाई हुई रसायन से धोते है, जो नुकसानकारी है ।
    10. सूप और सॉस : विदेश के स्टोर में वेजीटेरियन सुप-साँस विश्वसनीय नहीं होते । उसमें मछली के मांस का उपयोग होता है । मशीन के प्रथम चक्कर में चिकन कतराता है । फिर उसमे साग भाजी कतराती है ।
    11. स्वीट, कन्केकशनरी और अनेक पिपरमेंट में जिलेटीन, गाय की हड्‌डी का पाउडर डालते है ।
    12. टेकीला : अमेरिका में मेक्सीकन रेस्टारेंट में टेकीला नाम की दारु की बॉटल में उत्तेजना जाने वाले जीव डाले जाते है । इन जीवों का अर्क दारु के साथ पेट में जाता है ।
    13. लगभग टूथपेस्टों मे जिलेटीन (नं ८) होता है ।
    14. विटामिन D, B - 12, प्रवाही दवाई में चरबी, हड्‌डी का अंश होता है ।
    15. योगर्ट : गाय के दूध में दहीं जमाने के लिये - जिलेटीन का उपयोग होता है ।

    ऊंचाई बढ़ाने के लिये मरे हुए मानव के गर्दन में से पीच्युटरी ग्रंथी निकालकर 'ग्रोथ हार्मोन्स' बनता है । जो दवा ठिंगने बच्चों को देने के 2० वर्ष बाद मेड-काउडीझीझ के रोग से बहुत से बच्चों की मृत्यु हुई।

    जीवन को बिगाडनेवाली बाहर की बहुत सारी चीजों से आज के समय में सबको बचना जरुरी है।
Source : Research of Dining Table by Acharya Hemratna Suriji

 

Leave a reply

One click login with:

 

Your email address will not be published.

Share


    Print Friendly